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Writer's pictureAkshvi Aware

जल व बिजली ही ऐसे दो मूलभूत आधार हैं,जिनके समुचित व निरंतर प्रवाह में ही समृद्धि निहित है


भारत के प्राकृतिक संसाधनों (कृषि योग्य जमीन, पशुधन, नदी-नाले और वर्कफोर्स) को मद्देनजर रखते हुए; भारत देश के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, पर्यावरणविदों, शिक्षाविदों व योजनाकारो ने जल व बिजली के समुचित प्रवाह हेतु वर्ष 1994 तक महत्वपूर्ण योजनाएं बना लीं थी। चायना व अन्य विकसित कंट्रीज की भाँति भारत में भी ये सभी योजनाएं समयान्तर्गत हो जातीं तो, आज भारत एक पूर्ण विकसित व संपन्न देश होता। मोरबी में 500-500 मेगावाट के दो स्मार्ट ऑफग्रिड मॉड्यूलर अणु संयंत्र लगते हैं, तो इससे मोरबी के सभी इंडस्ट्रियलिस्ट्स की बिजली व उष्मा ऊर्जा की आवश्यकता सतत व विश्वसनीय स्तर पर पूरी हो सकेगी। भविष्य में, जैसे-जैसे यहां की इंडस्ट्रीज बढ़ेगी, वैसे-वैसे ऐसे ही ओर भी अणु सयंत्र यहां स्थापित हो सकेंगे। ये संयंत्र किसी खूबसूरत मोल की तरह के होते हैं, इन्हें शहर के बीचों-बीच कम से कम से जगह में लगाए जा सकेंगे। इनसे किसी भी प्रकार की सुरक्षा बाधित नहीं होगी। भारत देश इस हेतु हर प्रकार से सक्षम है। मोरबी की यही डिमांड सौलर पॉवर प्लांटों से करने की सोचे तो इसके लिए कम से कम 4000 मेगावाट के सौलर पॉवर प्लांट्स लगाने होंगे और इसके लिए 1000 वर्ग किलोमीटर से भी अधिक निर्जन भूमि की आवश्यकता होगी। यह तो किसी भी प्रकार से फीजिबिल नहीं हो सकेगा। भारत में परमाणु बिजलीघरों की स्थापनाओं के मार्ग में हालांकि चैलेंजेज हैं, लेकिन मोरबी में तो ये चैलेंजेज नहीं भी है। कारण- पहला चैलेन्ज: सम्बंधित बिजनिस लॉबीज़ (परमाणु सहेली के जन-जागरूकता कार्यक्रमों व प्रयासों के फलस्वरूप तमिलनाडु के कुडनकुलम में अम्बानी ग्रुप को वर्ष 2018 में 1000 मेगावाट के परमाणु बिजलीघर की स्थापना का कार्य प्राप्त हुआ है। स्पष्ट है कि, मोरबी में भी 500-500 मेगावाट के स्मार्ट मॉड्यूलर रिएक्टर्स की स्थापना का कार्य भी अम्बानी ग्रुप ही करेंगे। अभी भारत की पर कैपिटा बिजली सप्लाई क्षमता 1100 यूनिट है, जबकि चायना की यह 5000 यूनिट तक है, और जापान, फ्रांस, रसिया, जर्मनी व अमेरिका की यह 8000 यूनिट से लेकर 13000 यूनिट तक है। बिजली उत्पादन योजना के mutabik भारत को अपने सभी संभव स्त्रोतों को उपयोग में लाते हुए औसतन 5000 यूनिट प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष बिजली उत्पादन तक पहुँचना है। 1 यूनिट के औसत उपभोग से 100 रूपये के बराबर का आऊटपुट आता है। अतः अडानी ग्रुप के थर्मल व सौलर पॉवर प्लांटों से बिजली उत्पादन में भारत सरकार द्वारा यदि सब्सिडी दी जाती है तो यह भी देश के वास्तविक व सतत विकास में शुद्ध लाभ की बात है। इस प्रकार पहला चैलेन्ज "बिजनिस लॉबीज" का मोरबी में नहीं है।

वर्ष 2015 में जापान-अम्बानी-भारत ने इसी सम्बन्ध में समझौता भी किया है। गांधीनगर में अम्बानी ग्रुप के सीईओ ke sath meeting se yh मालूम चला कि, पब्लिक विरोधों के डर से अम्बानी ग्रुप इसमें गंभीरता पूर्वक शामिल नहीं हो रहे हैं।

दूसरा चैलेन्ज: एंटी एक्टिविस्ट्स का है। तीसरा चैलेन्ज: राजनैतिक मंशा का है। परमाणु सहेली अपने कार्यक्रमों से आम से लेकर ख़ास जनता में जागरूकता कर सकारात्मक वातावरण स्थापित कर dene men saksham hai- aise men, क्षेत्रीय जनता राजी, यहां के इंडस्ट्रियलिस्ट्स राजी, सम्बंधित बिजनिस लॉबी राजी, तो फिर जाहिर सी बात है कि राजनैतिक मंशा भी सकारात्मक होगी ही।

भारत देश का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम भी बराबर गति से आगे बढे तो, भारत अपने 500 जिलों में बेसलोड की सतत बिजली सप्लाई हेतु 500-500 मेगावाट के स्मार्ट मॉड्यूलर रिएक्टर बनाने की क्षमता रखता है। यदि मोरबी अपने यहां 500-500 मेगावाट की दो इकाईयां लगाने में सफल हो जाता है तो, समूचे भारत में अंबानी जी 500-500 मेगावाट के स्मार्ट मॉड्यूलर रिएक्टर स्थापित कर सकेंगे। इससे भारत के विश्वसनीय विकास में बहुत बड़ा बून आ सकेगा। करोडो लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष आजीविका के माध्यम प्राप्त हो सकेंगे। प्रजातांत्रिक भारत की यह सर्वोत्कृष्ट अर्थव्यवस्था हो सकेगी। सौलर पॉवर प्लांट्स की योजना के मुताबिक़- गुजरात राज्य में नर्मदा सरदार सरोवर प्रोजेक्ट के तहत जो 80,000 किलोमीटर लम्बी नहरें खिंचेंगी और राजस्थान में भी जल वितरण की पांच योजनाओं के तहत 30,000 किलोमीटर लम्बी नहरें खिंचेंगी; इन नहरों के ऊपर-ऊपर सोलर पॉवर प्लांट्स की स्थापना होनी होगी। इससे तीन तरह के फायदे होंगे। पहला, नहरों से खेतों तक पानी को भेजा जा सकेगा; दूसरा, नहरों में बहता हुआ पानी कम उड़ पायेगा; तीसरा, इन सौलर प्लांटों को बनाने के लिए अलग से जमीन की जरूरत नहीं पड़ेगी। और इन प्लांटों की स्थापना, प्रचालन व रक्षण-अनुरक्षण से कई लाख परिवारों को रोजगार व नौकरियां मुनासिब हो सकेंगी। जल व बिजली जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की सहज, सुरक्षित व व्यापारिक दृष्टि से प्रतिस्पर्धात्मक व्यवस्थाएं ही देश को सच्चे अर्थों में समृद्ध व विकसित बना सकती है। चायना, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, रसिया और अमेरिका जैसे समृद्ध देश इस बात के पुख्ता उदाहरण हैं। परमाणु सहेली के जीवन का तो यही उद्देश्य है कि- भारत की समग्र बजली उत्पादन योजना (औसतन, 5000 यूनिट प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष) के मार्ग से सभी चैलेंजेज को हटाना है और राजस्थान को रेगिस्तान होने से बचाना है । अर्थात वहां पानी से सम्बंधित पांचो प्रोजेक्ट्स पर कार्य प्रारम्भ करवाना है । इसके लिए मैंने समग्र जन-जागरूकता का मार्ग चुना है। मुझे पूर्ण विश्वास रहता है कि धीरे-धीरे जागरूक होता हुआ प्रजातांत्रिक भारत अपने वास्तविक व सतत विकास की राह को पकड़ ही लेगा।

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